अटल बिहारी वाजपेयी की हालत नाज़ुक: एम्स

दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने गुरुवार सुबह एक बयान जारी कर कहा है कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की हालत नाज़ुक बनी हुई है और उसमें कोई सुधार नहीं हो रहा है.
सुबह 11 बजे के क़रीब एम्स ने मेडिकल बुलेटिन जारी कर उनकी तबीयत को अभी भी चिंताजनक बताया.
एम्स ने अपने बयान में कहा, "पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की हालत अभी भी नाज़ुक है और उन्हें जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया है.''
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी को देखने के लिए एम्स पहुंचे हैं. वो बुधवार को भी एम्स गए थे और वहां 45 मिनट तक रुके थे.
एक-एक कर कई बड़े नेता भी वाजपेयी की हालत जानने एम्स पहुंच रहे हैं.
वाजपेयी से मिलने पहुंचने वालों में भाजपा के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, उपराष्ट्रपति एम.वेंकैया नायडू, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह, पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन प्रमुख हैं. वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी एम्स पहुंचे.
वाजपेयी मधुमेह के मरीज़ हैं और एम्स में उनका इलाज एम्स के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया की निगरानी में 11 जून से चल रहा है.
उन्हें इसी वर्ष जून में किडनी में संक्रमण और कुछ अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से एम्स में भर्ती कराया गया था.
अटल बिहारी वाजपेयी दस बार लोकसभा के लिए चुने गए. वे दूसरी लोकसभा से चौदहवीं लोकसभा तक सांसद रहे.
बीच में कुछ लोकसभाओं से उनकी अनुपस्थिति रही. ख़ासतौर से वर्ष 1984 में जब वो ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया के हाथों पराजित हुए थे.
वे वर्ष 1962 से 1967 और 1986 में राज्यसभा के सदस्य भी रहे. 16 मई 1996 को अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने.
लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा. इसके बाद वर्ष 1998 तक लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे.
वर्ष 1998 के आमचुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ उन्होंने लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत साबित किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने.
लेकिन एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए.
वर्ष 1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया था
तब गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली थी.

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